Skip to main content

आत्मा

 

आत्मा

 आत्मा क्या है ?

आत्मा अमर है, नाहीं कभी जन्म लेता, नाहीं उसकी मृत्यु होती। आत्मा सनातन है। आत्मा एक उर्जा का रुप हैं जो शरीर से दूर होने पर अस्तित्व प्राप्त करती है।

 यह शरीर पांच तत्वों से बना है- अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। एक दिन यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाएगा।'- गीता

आत्मा के तीन स्वरूप माने गए हैं :- 

1. जीवात्मा    2. प्रेतात्मा और     3.सूक्ष्मात्मा। 

जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।

84 लाख योनियां : पशु योनि, पक्षी योनि, मनुष्य योनि में जीवन-यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चली जाती हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां हैं, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं।

हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जीवात्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म पाती है। 84 लाख योनियां निम्नानुसार मानी गई हैं- पेड़-पौधे- 30 लाख, कीड़े-मकौड़े- 27 लाख, पक्षी- 14 लाख, पानी के जीव-जंतु- 9 लाख, देवता, मनुष्य, पशु- 4 लाख, कुल योनियां- 84 लाख।

मृतात्मा स्थूल शरीर से अलग होने पर सूक्ष्म शरीर में प्रविष्ट कर जाती है। यह सूक्ष्म शरीर ठीक स्थूल शरीर की ही बनावट का होता है, जो दिखाई नहीं देता। खुद मृतात्मा को भी इस शरीर के होने की बस अनुभूति होती है लेकिन कुछ आत्माएं ही इस शरीर को देख पाती हैं।

इस दौरान मृतक को बड़ा आश्चर्य लगता है कि मेरा शरीर कितना हल्का हो गया है और मैं हवा में पक्षियों की तरह उड़ सकता हूं। स्थूल शरीर छोड़ने के बाद आत्मा अपने मृत शरीर के आसपास ही मंडराता रहता है। उसके शरीर के आसपास एकत्रित लोगों के वह कुछ कहना चाहता है लेकिन कोई उसकी सुनता नहीं है।

 

मृत आत्मा खुद को मृत नहीं मानकर अजीब से व्यवहार भी करता है। वह अपने अंग-प्रत्यंगों को हिलाता-डुलाता है, हाथ-पैर को चलाता है, पर उसे ऐसा अनुभव नहीं होता कि वह मर गया है। उसे लगता है कि शायद यह स्वप्न चल रहा है लेकिन उसका भ्रम मिट जाता है तब वह पुन: मृत शरीर में घुसने का प्रयास करता है लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो पाता।

जब तक मृत शरीर की अंत्येष्टि क्रिया होती है, तब तक जीव बार-बार उसके शरीर के पास मंडराता रहता है। जला देने पर वह उसी समय निराश होकर दूसरी ओर मन को लगाने लग जाता है, किंतु गाड़ देने पर वह उस शरीर का मोह नहीं छोड़ पाता और बहुत दिनों तक उसके इधर-उधर फिरा करता है।

विज्ञान मे आत्मा का कोई स्थान नही है। विज्ञान मुख्य रूप से पदार्थ और उसके मूलभूत कणो (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्युट्रांन, पोजिट्रान आदि) के साथ-साथ मुख्य रूप से ऊर्जा की ही बात करता है। क्वांटम फिजिक्स कहती है, कि जो कुछ भी है सब ऊर्जा है। लेकिन अगर अध्यात्म की बात करें तो भगवान कृष्ण ने अपने उपदेश मे ऐसा नहीं कहा कि जो कुछ भी है, सब आत्मा है। उन्होंने कहा जो मृत्यु को प्राप्त होकर नष्ट होता है, वो तो शरीर है। आत्मा का कभी नाश नहीं होता। इस तरह स्पष्ट हो जाता है कि पदार्थ और आत्मा दो अलग अलग हैं। ऊर्जा पदार्थ मे ही निहित है। अब प्रश्न उठता है: ऊर्जा क्या है?

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम व्याख्या करता है, “ ऊर्जा को ना तो उत्पन्न किया जा सकता है और ना ही नष्ट किया जा सकता है, ऊर्जा का केवल एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरण किया जा सकता है।

आत्मा के बारे मे भी शास्त्र/ भगवान कृष्ण कहते हैं, “आत्मा कभी नष्ट नहीं होती, आत्मा नये शरीर धारण करती है।

अब एक बात स्पष्ट कर दूँ, जो व्यक्ति विज्ञान पढ़ते हैं और अध्यात्म मे विश्वास करते हैं, वे अपनी पूरी शक्ति लगाकर आत्मा और ऊर्जा की एक ही परिभाषा समझकर दोनो को एक ही मान लेते हैं। यह बहुत दुख की बात है लोग जब देखते हैं कि विज्ञान आत्मा को नहीं मानता है तो ऊर्जा को ही आत्मा साबित कर दो। और ये बोल दो कि खाली शब्दों का हेर फेर है। विज्ञान उसे ऊर्जा कहता है और हम उसे आत्मा कहते हैं। ऐसे ही ज्योतिषी भी ज्योतिष को पूरी शक्ति लगाकर विज्ञान साबित करते हैं। अरे भाई अध्यात्म अपनी जगह है और हमारा आधुनिक विज्ञान अपनी जगह है। हम बहुत से विषय पढ़ते हैं, जो विज्ञान नहीं है तो क्या उनका अपना महत्व नही है?

 

आत्मा के अजर-अमर होने की मान्यता को वैज्ञानिक समर्थन भी मिलने लगा है। भौतिकी और गणित के दो वैज्ञानिकों ने लंबे शोध के बाद दावा किया है कि आत्मा कभी मरती नहीं है, सिर्फ शरीर मरता है। मृत्यु के बाद आत्मा ब्रह्मांड में वापस चली जाती है, लेकिन इसमें निहित सूचनाएं कभी नष्ट नहीं होती हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के गणित व भौतिकी के प्रोफेसर सर रोगर पेनरोज और यूनिवर्सिटी ऑफ एरीजोना के भौतिकी वैज्ञानिक डॉ. स्टुअर्ट हमरॉफ ने करीब दो दशक के शोध के बाद इस विषय पर छह शोधपत्र प्रकाशित किए हैं। हाल ही में उनके शोध पर अमेरिका के मशहूर साइंस चैनल ने डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई है जो जल्द ही प्रसारित होने वाली है।

मानव दिमाग एक कंप्यूटर

शोधकर्ताओं का कहना है कि मानव मस्तिष्क एक जैविक कंप्यूटर की भांति है। इस जैविक कंप्यूटर का प्रोग्राम चेतना या आत्मा है जो मस्तिष्क के अंदर मौजूद एक क्वांटम कंप्यूटर के जरिये संचालित होती है। क्वांटम कंप्यूटर से तात्पर्य मस्तिष्क की कोशिकाओं में स्थित सूक्ष्म नलिकाओं से है जो प्रोटीन आधारित अणुओं से निर्मित हैं। बड़ी संख्या में ऊर्जा के ये सूक्ष्म स्रोत अणु मिलकर एक क्वाटंम स्टेट तैयार करते हैं जो वास्तव में चेतना या आत्मा है।

ब्रह्मांड में विलीन होती है आत्मा

वैज्ञानिकों के अनुसार, जब व्यक्ति दिमागी रूप से मृत होने लगता है तब ये सूक्ष्म नलिकाएं क्वांटम स्टेट खोने लगती हैं। सूक्ष्म ऊर्जा कण मस्तिष्क की नलिकाओं से निकल ब्रह्मांड में चले जाते हैं। कभी मरता इंसान जिंदा हो उठता है, तब ये कण वापस सूक्ष्म नलिकाओं में लौट जाते हैं।

क्वांटम सिद्धांत आधार

वैज्ञानिकों को यह शोध भौतिकी के क्वाटंम सिद्धांत पर आधारित हैं। इसके अनुसार आत्मा चेतन दिमाग की कोशिकाओं में प्रोटीन से बनी नलिकाओं में ऊर्जा के सूक्ष्म स्रोत अणुओं एवं उपअणुओं के रूप में रहती है। सूचनाएं इन्हीं सूक्ष्म कणों में संग्रहित रहती हैं।

सूचनाएं नष्ट नहीं होतीं

शोध के अनुसार सूक्ष्म ऊर्जा कणों के ब्रह्मांड में जाने के बावजूद उनमें निहित सूचनाएं नष्ट नहीं होती।  वैज्ञानिक ने भी इसकी पुष्टि की है।

Comments

Popular posts from this blog

रत्न क्या कर सकता है ?

  रत्न:-   सबसे पहले हम जान लेते हैं कि रत्न क्या है? काम क्या करता है?  क्या रत्न अशुभ / नीच ग्रह को शुभ कर सकता है ? रत्नों का सिर्फ काम है ग्रह की ताकत / प्रभाव को बढ़ाना ।  जो भी ग्रह है उस ग्रह की ताकत, उस ग्रह के प्रभाव को बढ़ाना। अच्छे ग्रह हैं तो अच्छे ग्रह की ताकत को बढ़ाएगा और अगर कुंडली में वह ग्रह खराब स्थिति में है तो भी वह उसके प्रभाव को बढ़ाएगा। जो ग्रह हमारे कुंडली में अच्छे भाव में है अगर हम उनके रत्न पहनते हैं तो वह उसके प्रभाव को बढ़ाएगा जो हमें फायदा देगा।  जो ग्रह हमारे कुंडली में अशुभ / नीच में है खराब है तो रत्न शुभ नहीं कर सकता है बल्कि अगर उसके रत्न धारण करेंगे तो वह रत्न उसके प्रभाव को बढ़ाएगा और नीच / अशुभ होने के कारण वह ग्रह हमें परेशान करेंगे।  रत्न हमेशा शुभ / योगकारक / कमजोर ग्रह के ही धारण करने चाहिए। जो ग्रह कुंडली में शुभ हो लेकिन उसमें बल की कमी हो तो उससे संबंधित रत्न को धारण करना चाहिए।  जो ग्रह कुंडली में शुभ हो और बलवान हो तो उसके रत्न को धारण नहीं करना चाहिए, क्योंकि बलवान ग्रह का रत्न धारण करने से वह अशुभ ...

कामप्रजाळण नाच करे I कवि दुला भाई काग कृत

 कामप्रजाळण नाच करे : रचना :- कवि दुला भाई काग कृत (छंद - दुर्मिला)  परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे, भभके गण भूत भयंकर भुतळ, नाथ अधंखर ते नखते, भणके तळ अंबर बाधाय भंखर , गाजत जंगर पांह गते ; डमरुय डडंकर बाह जटंकर , शंकर ते कईलास सरे, परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे, (1) हडडं खडडं ब्रह्मांड हले, दडडं दडदा कर डाक बजे, जळळं दंग ज्वाल कराल जरे , सचरं थडडं गण साज सजे ; कडके धरणी कडडं , हडडं मुख नाथ ग्रजंत हरे , परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(2) हदताळ मृदंग हुहूकट,हाकट धाकट धीकट नाद धरं, द्रहद्राह दिदीकट वीकट दोक्ट,कट्ट फरंगट फेर फरं ; धधडे नग धोम धधा कर धीकट,धेंकट घोर कृताळ धरे, परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(3) नट तांडवरो भट देव घटां नट उलट गूलट धार अजं, चहँ थाक दुदूवट दूवट खेंखट,गेंगट भू कईलास ग्रजं ; तत तान त्रिपुरारि त्रेकट त्रुकट, भूलट धुहर ठेक भरे, परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(4) सहणाई छेंछ अपार छटा,चहुथ नगारांय चोब रडे, करताल थपाट झपाट कटाकट, ढोल धमाकट मेर धडे ; उमया संग नाट गणं सरवेश्वर,ईश्वर 'थईततां,...

रुद्राक्ष के महत्व, लाभ और धारण विधि

एक मुखी रुद्राक्ष इसके मुख्य ग्रह सूर्य होते हैं। इसे धारण करने से हृदय रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द का कष्ट दूर होता है। चेतना का द्वार खुलता है, मन विकार रहित होता है और भय मुक्त रहता है। लक्ष्मी की कृपा होती है। दो मुखी रुद्राक्ष मुख्य ग्रह चन्द्र हैं यह शिव और शक्ति का प्रतीक है मनुष्य इसे धारण कर फेफड़े, गुर्दे, वायु और आंख के रोग को बचाता है। यह माता-पिता के लिए भी शुभ होता है। तीन मुखी रुद्राक्ष मुख्य ग्रह मंगल, भगवान शिव त्रिनेत्र हैं। भगवती महाकाली भी त्रिनेत्रा है। यह तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना साक्षात भगवान शिव और शक्ति को धारण करना है। यह अग्रि स्वरूप है इसका धारण करना रक्तविकार, रक्तचाप, कमजोरी, मासिक धर्म, अल्सर में लाभप्रद है। आज्ञा चक्र जागरण (थर्ड आई) में इसका विशेष महत्व है। चार मुखी रुद्राक्ष चार मुखी रुद्राक्ष के मुख्य देवता ब्रह्मा हैं और यह बुधग्रह का प्रतिनिधित्व करता है इसे वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता और चिकित्सक यदि पहनें तो उन्हें विशेष प्रगति का फल देता है। यह मानसिक रोग, बुखार, पक्षाघात, नाक की बीमारी में भी लाभप्रद है। पांच मुखी रुद्राक्ष यह साक्षात भग...