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Showing posts with the label कुंडली

कौन सा व्यापार करें कुंडली के अनुशार

  आप कौन सा व्यापार करें, इसके लिए प्रत्येक ग्रहों की अपनी भूमिका होती है. कुंडली में सूर्य ग्रह का मजबूत होना:  यदि आपकी कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत है तो आप बिजली, होटल, आभूषण, मेडिकल स्टोर, जनरल स्टोर, कपड़ा, वाहन, से जुड़े व्यवसाय कर सकते हैं. इन बिजनेस में आपको फायदा हो सकता है. कुंडली में चंद्रमा का मजबूत होना:  यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा मजबूत है तो आपके लिए कृषि, कोल्ड ड्रिंक, आयुर्वेद, मोटर पार्ट्स, पेट्रोल पंप, म्यूजिक, मिट्टी, दलाली, प्रकाशन, दूध से जुड़े व्यवसाय करना लाभकारी होगा. कुंडली में मंगल ग्रह का मजबूत होना:  यदि आपकी कुंडली में मंगल मजबूत है तो आप कम्प्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक, मेडिकल, सर्जरी, कोर्ट आदि से जुड़े कार्य कर सकते हैं. कुंडली में बुध ग्रह का मजबूत होना:  बुध के मजबूत होने पर आप टूरिज्म, मोबाइल, पान मसाला, पुस्तक, चूड़ियां, कपड़े, फर्नीचर से जुड़े व्यापार करेंगे तो लाभ में रहेंगे. कुंडली में गुरू का मजबूत होना:  कुंडली में यदि गुरू मजबूत है तो आप एडिटिंग, होलसेल, पूजा-पाठ, मिठाई की दुकान, फिल्म प्रोडक्शन, प्रॉपर्टी, विचारक, शिक्षा...

नक्षत्र का विभाजन

 नक्षत्र का स्वभाव और गुण  ज्योतिष में 27 नक्षत्र / सितारे है  27 नक्षत्रों के नाम क्रमानुसार  - 1.अश्विन नक्षत्र, 2.भरणी नक्षत्र, 3.कृत्तिका नक्षत्र, 4.रोहिणी नक्षत्र, 5.मृगशिरा नक्षत्र, 6.आर्द्रा नक्षत्र, 7.पुनर्वसु नक्षत्र, 8.पुष्य नक्षत्र, 9.आश्लेषा नक्षत्र, 10.मघा नक्षत्र, 11.पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, 12.उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, 13.हस्त नक्षत्र, 14.चित्रा नक्षत्र, 15.स्वाति नक्षत्र, 16.विशाखा नक्षत्र, 17.अनुराधा नक्षत्र, 18.ज्येष्ठा नक्षत्र, 19.मूल नक्षत्र, 20.पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, 21.उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, 22.श्रवण नक्षत्र, 23.घनिष्ठा नक्षत्र, 24.शतभिषा नक्षत्र, 25.पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, 26.उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, 27.रेवती नक्षत्र।  ज्योतिष के अनुशार नक्षत्र को अनेक भाग में विभाजित किया गया है :-  पुरुष नक्षत्र और महिला नक्षत्र देव, मनुष्य और राक्षस सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण 1. पुरुष नक्षत्र और महिला नक्षत्र पुरुष नक्षत्र :-  अश्विनी, भरणी, पुष्य, अश्लेषा, माघ, उत्तराफाल्गुनी, स्वाति, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण और पूर्वा भाद्रपद पुरुष ...

हर नक्षत्र का होता है एक स्वामी ग्रह

-:  हर नक्षत्र का एक स्वामी ग्रह भी होता है :- सूर्य:-           कार्तिक ,  उत्तरा फाल्गुनी ,  उत्तराषाढ़ा। चन्द्र:-           रोहिणी ,  हस्त ,  श्रवण। मंगल:-           मृगशिरा ,  चित्रा ,  धनिष्ठा। बुध:-                आश्लेषा ,  ज्येष्ठा ,  रेवती। बृहस्पति:-      पुनर्वसु ,  विशाखा ,  पूर्वा भाद्रपद। शुक्र:-                भरणी ,  पूर्वा फाल्गुनी ,  पूर्वाषाढ़ा। शनि:-                पुष्य ,  अनुराधा ,  उत्तरा भाद्रपद। राहु:-                     आर्द्रा ,  स्वाति ,  शतभिषा। केतु:-                     आश्विन ,  मघा ,  मूल।

क्या होतें है शुभ और अशुभ नक्षत्र ?

 ज्योतिष के हिसाब से   27 नक्षत्रों को तीन हिस्सों में बांटा गया है - शुभ नक्षत्र, मध्यम नक्षत्र और अशुभ नक्षत्र। शुभ नक्षत्र शुभ नक्षत्र वो होते हैं जिनमें किए गए सभी काम सिद्ध और सफल होते हैं।  इनमें 15 नक्षत्रों को माना जाता है :–  रोहिणी, अश्विन, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, रेवती, श्रवण, स्वाति, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढा, उत्तरा फाल्गुनी, घनिष्ठा, पुनर्वसु । मध्यम नक्षत्र मध्यम नक्षत्र के तहत वह नक्षत्र आते हैं जिसमें आम तौर पर कोई विशेष या बड़ा काम करना उचित नहीं, लेकिन सामान्य कामकाज के लिहाज से कोई नुकसान नहीं होता।  इनमें जो नक्षत्र आते हैं वो हैं पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, मूला और शतभिषा । अशुभ नक्षत्र अशुभ नक्षत्र में तो कभी कोई शुभ काम करना ही नहीं चाहिए। इसके हमेशा बुरे नतीजे होते हैं या कामकाज में बाधा जरूर आती है। इसके तहत जो नक्षत्र आते हैं वो हैं- भरणी, कृतिका, मघा और आश्लेषा । ये नक्षत्र आम तौर पर बड़े और विध्वंसक  विस्फोट  कामकाज के लिए ठीक माने जाते हैं जैसे - पहाड़ काटने क...

कौन ग्रह कितना बली है?

 ग्रहों का नैसर्गिक बल शनि से मंगल, मंगल से बुध, बुध से गुरु, गुरु से शुक्र, शुक्र से चन्द्र, चन्द्र से सूर्य उत्तरोत्तर बली कहलाते है।  उदाहरण से - यदि एक ही भाव में मंगल और शुक्र दोनों  विराजमान हो तो शुक्र का बल मंगल से ज्यादा होगा। 

ग्रहों का स्वभाव , फल , रोग और कारक तत्व

  ग्रहों का स्वभाव , फल , रोग और कारकत्व* सूर्य। आकाश मंडल का मुख्य केंद्र, सभी ग्रह इसी के प्रकाश से प्रकाशमय होते है। सबसे ज्यादा बलवान और पराक्रमी ग्रह। कारक : आत्मा. पिता, नेत्र, पराक्रम, तेज़, माणिक्य, राजा, शासनादी, हड्डीयों, पेट एवं हृदय। कुंडली में १, ९, १० भाव का कारक। विचार : शारीरिक गठन, शक्ति, पिता, वैध, उच्च वर्ग, प्रतिष्ठा, ग्रीष्म ऋतु, सोना, तांबा, शरीर का सुख। पित प्रकृति, सतोगुण,अग्नि – तत्व, पुरुष जाति, पूर्व दिशा का स्वामी, दिन में बली। मेष राशि में १० अंश उच्च एवं तुला राशि में १० अंश नीच। रत्न : प्रिय रत्न माणिक्य, क्षत्रिय जाति का ग्रह। रोग : रक्त, पित विकार, सिर दर्द, नेत्र रोग, ज्वर, ह्रदय रोग, अतिसार, पेट की बीमारी व हड्डियों का रोग, व्याकुलता । चंद्रमा मन के उपर प्रभाव, कुण्डली में चंद्रमा खराब होने पर मन और पाँचो इन्द्रियों पर प्रभाव। सूर्य से प्रकाश मिलने पर ही चमकता है, पूर्ण रूपसे पृथ्वी पर प्रभाव। तीव्र गति से घुमने वाला ग्रह ।सवा दो दिन एक राशी में भ्रमण , मन की संकल्प शक्ति चंद्रमा से प्रभावित। कारक : मन, बुद्धि, माता, धन, खूबसूरती, चावल, सफेद रंगो क...

कौन सा ग्रह किस रिश्ते के लिए है जिम्मेदार

 हर रिश्ते के लिए अलग अलग ग्रह जिम्मेदार होते हैं. सूर्य पिता के रिश्ते से सम्बन्ध रखता है तो चन्द्रमा माता का और मंगल भाई बहन का ग्रह है.आइए जानते हैं कौन सा ग्रह किस रिश्ते के लिए है जिम्मेदार-  सूर्य पिता के रिश्ते से सम्बन्ध रखता है. चन्द्रमा का संबंध माता से होता है. मंगल भाई बहन का ग्रह माना जाता है. बुध ननिहाल पक्ष का और बृहस्पति ददिहाल पक्ष का कारक है. बृहस्पति संतान पक्ष के रिश्तों का स्वामी होता है. शुक्र दाम्पत्य जीवन के रिश्तों का ग्रह है. शनि अपने अधीन लोगों के साथ रिश्तों का स्वामी है. बता दें, किसी भी रिश्ते को बनाने और निभाने में सबसे ज्यादा भूमिका चन्द्रमा और मंगल की ही मानी जाती है. रिश्तों में समस्या कब पैदा होती है ?  किसी भी रिश्ते में उस समय दूरी या खटास आने लगती हैं. जब कुंडली में रिश्तों के स्वामी ग्रह कमजोर होने लगते हैं. इसके अलावा रिश्तों में राहु का प्रभावअधिक होने पर भी रिश्तों में तनाव आ सकता है.अगर आपकी कुंडली में अग्नि तत्व की मात्रा ज्यादा है या फिर चन्द्रमा या मंगल की स्थिति खराब है तब भी आपके रिश्तों में समस्या पैदा हो सकती है.  रिश...

गुरु कमजोर है ? क्या करे!!

यदि किसी की कुंडली में गुरु कमजोर स्थिति में हो तो जीवन में आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है , भाग्य साथ नहीं देता और वैवाहिक परेशानियां आती हैं . यहां जानिए इसे मजबूत करने के आसान तरीके . बृहस्पति ग्रह को देव गुरू कहा गया है . माना जाता है कि यदि कुंडली में देव गुरु बृहस्पति मजबूत स्थिति में हों , तो व्यक्ति की किस्मत चमक जाती है . उसकी आंखों में चमक और चेहरे पर तेज होता है . वो व्यक्ति किसी को भी अपने ज्ञान के समक्ष झुकाने की पूरी ताकत रखता है . ऐसे लोग जीवन में बहुत तरक्की प्राप्त करते हैं और दूसरों के प्रेरणादायी बनते हैं . उनके जीवन में धन की कभी कमी नहीं रहती . गुरु व्यक्ति को धर्म और अध्यात्म का मार्ग दिखाता है और व्यक्ति को नम्र स्वभाव का बनाता है . लेकिन इसके विपरीत अगर कुंडली में गुरु दोष लगा हो तो विवाह में देरी होती है और जिनका विवाह हो चुका है , उनके वैवाहिक जीवन में समस्याएं आती हैं . भाग्य साथ नहीं देता और व्यक्ति...