*संजीवनी है गेहूँ के ज्वारे*
*क्या है गेहूँ का ज्वारा*:जब गेहूं के बीज को अच्छी उपजाऊ जमीन में बोया जाता है, तो कुछ ही दिनों में वह अंकुरित होकर बढ़ने लगता है और उसमें पत्तियां निकलने लगती है। जब यह अंकुर पांच-छह पत्तों का हो जाता है तो अंकुरित बीज का यह भाग ज्वारा कहलाता है। औषधीय विज्ञान में गेहूं का यह ज्वारा काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। गेहूं के ज्वारे का रस कैंसर जैसे कई रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है।इसीलिए इसे हरित रक्त भी कहते हैँ।
*किन बीमारियों में हैं लाभदायी* : गेहूं के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं।इसलिए कोई भी रोग हो तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
*कैसे तैयार करें*: रात को सोते समय लगभग आवश्यकतानुसार गेहूं को एक पात्र में भिगोकर रखें। दूसरे दिन गेहुओं को धोकर गमले में बिछाएं और ऊपर से मिट्टी डालें और पानी से सींच दें। गमले को किसी छायादार जगह पर रखें, जहां पर्याप्त हवा और प्रकाश आता हो, पर सीधी धूप से बचाएं। 5-6 दिन बाद 7-8 इंच लंबे ज्वारे हो जाएं, तो इनको जड़ सहित उखाड़कर अच्छी तरह से धो लें। फिर इसे पीस लें। करीब आधा गिलास पानी मिलाकर इसे छान लें आैर सुबह खाली पेट पिएं।
एक घंट तक कोई भी आहार या पेय पदार्थ न लें। ज्वारे के रस में फलों और सब्जियों के रस जैसे सेव, अन्नानास आदि के रस को मिलाया जा सकता है। हां, इसे कभी भी खट्टे रसों जैसे नींबू, संतरा आदि के रस में नहीं मिलाएं, क्योंकि यह ज्वारे के रस में विद्यमान एंजाइम्स को निष्क्रिय कर देती है।
डॉ पूनम सिंह
वैज्ञानिक (गृह विज्ञान)
के.वी.के.कन्नौज
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