पुराने समय में जब
आधुनिक तकनीकों का प्रचलन नहीं था, उस समय मौसम आधारित भविष्यवाणियां सटीक होती थीं, जो अनुभवी लोगों द्वारा समय-समय पर की जाती थीं। ऐसे ही अनुभवी
कवियों में माने जाते हैं महाकवि घाघ।
घाघ के कृषिज्ञान का पूरा-पूरा परिचय उनकी कहावतों से मिलता है।
उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान। 1।
खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै। 2।
उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो सँग रहा। 3।
जो हल जोतै खेती वाकी और नहीं तो जाकी ताकी। 4।
खादों के संबंध में घाघ के विचार
अत्यंत पुष्ट थे। उन्होंने गोबर, कूड़ा, हड्डी, नील, सनई, आदि की खादों को कृषि में प्रयुक्त किए जाने के लिये वैसा ही
सराहनीय प्रयास किया जैसा कि 1840 ई. के आसपास जर्मनी के सप्रसिद्ध वैज्ञानिक लिबिग ने यूराप में
कृत्रिम उर्वरकों के संबंध में किया था। घाघ की निम्नलिखित कहावतें अत्यंत
सारगर्भित हैं :
खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत। 5।
गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै। 6।
सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै। 7।
गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली। 8।
वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा। 9।
घाघ ने गहरी जुताई को सर्वश्रेष्ठ जुताई बताया। यदि खाद छोड़कर गहरी जोत कर दी जाय तो खेती को बड़ा लाभ पहुँचता है :
छोड़ै खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई। 10।
बांध न बाँधने से भूमि के आवश्यक तत्व घुल जाते और उपज घट जाती है। इसलिये किसानों को चाहिए कि खेतों में बाँध अथवा मेंड़ बाँधे,
सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी
जो पचास का सौ न तुलै, देव घाघ को गारी।11।
घाघ ने फसलों के बोने का उचित काल एवं बीज की मात्रा का भी निर्देश किया है। उनके अनुसार प्रति बीघे में पाँच पसेरी गेहूँ तथा जौ, छ: पसेरी मटर, तीन पसेरी चना, दो सेर मोथी, अरहर और मास, तथा डेढ़ सेर कपास, बजरा बजरी, साँवाँ कोदों और अंजुली भर सरसों बोकर किसान दूना लाभ उठा सकते हैं। यही नहीं, उन्होंने बीज बोते समय बीजों के बीच की दूरी का भी उल्लेख किया है, जैसे घना-घना सन, मेंढ़क की छलांग पर ज्वार, पग पग पर बाजरा और कपास; हिरन की छलाँग पर ककड़ी और पास पास ऊख को बोना चाहिए। कच्चे खेत को नहीं जोतना चाहिए, नहीं तो बीज में अंकुर नहीं आते। यदि खेत में ढेले हों, तो उन्हें तोड़ देना चाहिए।
आजकल दालों की खेती पर विशेष बल दिया जाता है, क्योंकि उनसे खेतों में नाइट्रोजन की वृद्धि होती है। घाघ ने सनई, नील, उर्द, मोथी आदि द्विदलों को खेत में जोतकर खेतों की उर्वरता बढ़ाने का स्पष्ट उल्लेख किया है। खेतों की उचित समय पर सिंचाई की ओर भी उनका ध्यान था।
घाघ की कुछ कहावतें
इस प्रकार हैं।
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
अर्थ : यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों
प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
अर्थ : यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
अर्थ : यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो
देने से बहुत पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
अर्थ : यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
अर्थ : यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर
बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
अर्थ : यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना
चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
अर्थ : यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों
दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
अर्थ : यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो
तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
अर्थ : यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा
होगा।
अकाल और सुकाल[सम्पादन]
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।
यदि सावन सुदी
सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।
असुनी नलिया अन्त
विनासै।
गली रेवती जल को नासै।। भरनी नासै
तृनौ सहूतो।
कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
यदि चैत मास में
अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेवती नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो
अच्छी वर्षा होगी।
आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत।
नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।।
आषाढ़ की पूणिमा को
यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।
वर्षा[सम्पादन]
रोहिनी बरसै मृग
तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार
इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
उत्तर नक्षत्र ने
जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया। चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि
प्रजा को बसा लेता है। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में
पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है।
खनिके काटै घनै
मोरावै।
तव बरदा के दाम सुलावै।।
ऊंख की जड़ से
खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है। तभी बैलों का दाम भी वसूल
होता है।
हस्त बरस चित्रा
मंडराय।
घर बैठे किसान सुख पाए।।
हस्त में पानी
बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं।
हथिया पोछि ढोलावै।
घर बैठे गेहूं पावै।।
यदि इस नक्षत्र में
थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।
जब बरखा चित्रा में
होय।
सगरी खेती जावै खोय।। चित्रा नक्षत्र
की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।
जो बरसे पुनर्वसु
स्वाती।
चरखा चलै न बोलै तांती।
पुनर्वसु और स्वाती
नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह
करने की जरूरत नहीं पड़ती।
जो कहुं मग्घा बरसै
जल।
सब नाजों में होगा फल।। मघा में पानी
बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं।
जब बरसेगा उत्तरा।
नाज न खावै कुत्तरा।।
यदि उत्तरा नक्षत्र
बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे।
दसै असाढ़ी कृष्ण
की, मंगल रोहिनी होय।
सस्ता धान बिकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोय।।
यदि असाढ़ कृष्ण
पक्ष दशमी को मंगलवार और रोहिणी पड़े तो धान इतना सस्ता बिकेगा कि कोई हाथ से भी न
छुएगा।
असाढ़ मास आठें
अंधियारी।
जो निकले बादर जल धारी।। चन्दा निकले
बादर फोड़।
साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
यदि असाढ़ बदी
अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी
वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी।
असाढ़ मास पूनो
दिवस, बादल घेरे चन्द्र।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
यदि आसाढ़ी
पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढंका रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष
आनन्द ही आनन्द रहेगा।
पैदावार[सम्पादन]
रोहिनी जो बरसै
नहीं, बरसे जेठा मूर।
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।।
यदि रोहिनी में
वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ
बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं, और चना) अच्छा होगा।
जोत[सम्पादन]
गहिर न जोतै बोवै
धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।। गहरा न
जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
गेहूं भवा काहें।
असाढ़ के दुइ बाहें।। गेहूं भवा
काहें।
सोलह बाहें नौ गाहें।। गेहूं भवा
काहें।
सोलह दायं बाहें।। गेहूं भवा काहें।
कातिक के चौबाहें।।
गेहूं पैदावार
अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ बार
हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।
गेहूं बाहें।
धान बिदाहें।।
गेहूं की पैदावार
अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान का बीज बोने के अगले दिन जोतवा देने से,यदि धान के पौधों की रोपाई की जाती है तो विदाहने का काम नहीं करते, यह काम तभी किया जाता है जब आप खेत में सीधे धान का बीज बोते हैं) से अच्छी होती है।
गेहूं मटर सरसी।
औ जौ कुरसी।।
गेहूं और मटर बोआई
सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
गेहूं गाहा, धान विदाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।।
जौ-गेहूं कई बांह करने से धान बिदाहने से
और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।
गेहूं बाहें, चना दलाये।
धान गाहें, मक्का निराये।
ऊख कसाये।
खूब बांह करने से
गेहूं, खोंटने से चना,
बार-बार पानी मिलने से धान, निराने से मक्का और पानी में छोड़कर बाद
में बोने से उसकी फसल अच्छी होती है।
पुरुवा रोपे पूर
किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।
पूर्वा नक्षत्र में
धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है।
पुरुवा में जिनि
रोपो भैया।
एक धान में सोलह पैया।।
पूर्वा नक्षत्र में
धान न रोपो नहीं तो धान के एक पेड़ में सोलह पैया पैदा होगा।
बोवाई[सम्पादन]
कन्या धान मीनै जौ।
जहां चाहै तहंवै लौ।।
कन्या की
संक्रान्ति होने पर धान (कुमारी) और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए।
कुलिहर भदई बोओ
यार।
तब चिउरा की होय बहार।।
कुलिहर (पूस-माघ में जोते हुए) खेत में भादों में पकने वाला धान बोने से चिउड़े का आनन्द आता है-अर्थात् वह धान उपजता है।
आंक से कोदो, नीम जवा।
गाड़र गेहूं बेर चना।।
यदि मदार खूब फूलता
है तो कोदो की फसल अच्छी है। नीम के पेड़ में अधिक फूल-फल लगते है तो जौ की फसल, यदि गाड़र (एक घास जिसे खस भी कहते हैं) की वृद्धि होती है तो गेहूं बेर और चने की फसल अच्छी होती है।
आद्रा में जौ बोवै
साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।
जो किसान आद्रा में
धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
आद्रा बरसे
पुनर्वसुजाय, दीन अन्न कोऊ न खाय।।
यदि आर्द्रा
नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो ऐसी फसल होगी कि कोई
दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा।
आस-पास रबी बीच में खरीफ।
नोन-मिर्च डाल के,
खा गया हरीफ।।
खरीफ की फसल के बीच
में रबी की फसल अच्छी नहीं होती।
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